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"Panchaadi" पंचाड़ी - प्रारंभिक वर्षों के लिए NCF द्वारा सुझाई गई पाँच चरणों वाली शिक्षण पद्धति

Updated: 1 day ago

पंचाड़ी एक ऐसी शिक्षा पद्धती है जिसमें बच्चे पढ़ना, लिखना, गिनती आदि बुनियादी स्किल्स खेल, अनुभव और ऐक्टिविटीज के जरिए सीखते हैं।

NEP क्या है?

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 भारत सरकार द्वारा बनाई गई नई शिक्षा नीति है, जिसका उद्देश्य भारत की शिक्षा प्रणाली को इस तरह बदलना है कि वह आधुनिक ज्ञान-आधारित (knowledge-based) समाज की ज़रूरतों को पूरा कर सके।

NCF क्या है?

National Curriculum Framework (NCF), NEP का एक अहम हिस्सा है। इसका उद्देश्य है कि देश के सभी बच्चों को बेहतरीन शिक्षा मिले, चाहे वे किसी भी आर्थिक या सामाजिक पृष्ठभूमि से क्यों न हों। भारत एक विविध और बहुसांस्कृतिक (multicultural) देश है, इसलिए NCF का मकसद सभी बच्चों को समान अवसर दिलाना है। 

Foundational Years (3-8 वर्ष) के लिए NCF की खास बातें

पहले भारत में 3 से 6 साल के बच्चों के लिए कोई तय सरकारी शैक्षणिक पाठ्यक्रम नहीं था। 2013 में ECCE (Early Childhood Care and Education) नीति आई, जो बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और सामाजिक विकास पर केंद्रित थी।

अब पहली बार, NCF ने 3 से 8 साल के बच्चों के लिए एक एकीकृत (Integrated) पाठ्यचर्या रूपरेखा बनाई है। यह NEP 2020 के 5+3+3+4 ढाँचे पर आधारित है।

इसका मकसद छोटे बच्चों को खेल और activities के माध्यम से शिक्षा प्रदान करना है ताकि वे पढ़ना, लिखना और गिनती जैसी बेसिक स्किल्स (Foundational Literacy & Numeracy) अच्छे से सीख सकें।

सरकार मानती है कि इस निवेश से देश की अर्थव्यवस्था और शिक्षा में सुधार होगा।

एक महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि NCF बच्चों को पढ़ना, लिखना और गणना सिखाने (Foundational Literacy and Numeracy) के लिए खेल और गतिविधियों (activities) पर आधारित पढ़ाई की सलाह देता है।

NCF किस पर आधारित है?

Foundational Stage को दो हिस्सों में बाँटा गया है –

0 से 3 साल की उम्र: यह चरण घर पर बिताया जाता है। घर का माहौल बच्चे के सही पोषण, सेहत, सुरक्षा और मानसिक व भावनात्मक देखभाल के अनुकूल होना चाहिए।

3 से 8 साल की उम्र: यह चरण स्कूल या किसी संस्थान में होता है। संस्थान (जैसे प्री-स्कूल या आंगनवाड़ी) में बच्चों को खेल के ज़रिए सीखने का मौका मिलना चाहिए। इसमें self-help skills (जैसे खुद खाना, कपड़े पहनना), motor skills (शरीर का तालमेल), स्वच्छता (hygiene) और शारीरिक विकास पर ध्यान दिया जाता है। इस स्टेज में early literacy और numeracy यानी पढ़ना-लिखना और गिनती सीखने पर भी ज़ोर दिया जाता है।

Foundational Stage के लिए NCF मुख्य रूप से संस्थागत शिक्षा पर केंद्रित है, लेकिन यह घर के माहौल को भी महत्वपूर्ण मानता है। NEP 2020 का लक्ष्य है कि 2025 तक हर 3 से 8 साल के बच्चे को मुफ़्त, सुरक्षित और उत्तम क्वालिटी वाली वाली प्रारंभिक देखभाल और शिक्षा (ECCE) मिले।

NCF को तैयार करते समय दुनिया भर के ताज़ा और नए रिसर्च (जैसे न्यूरोसाइंस, ब्रेन स्टडीज़ और कॉग्निटिव साइंस) का सहारा लिया गया है। इसके अलावा, NCF ने ECCE के अनुभवों और विभिन्न भारतीय परंपराओं के ज्ञान को भी इसमें शामिल किया है। 

यह पाठ्यक्रम, पढ़ाने के तरीके और बच्चे के अनुभव में खेल को सबसे महत्वपूर्ण मानता है। इस ढांचे में, NEP 2020 के अनुसार, बच्चे की उम्र के अनुरूप विभिन्न उपायों का प्रयोग कर शुरुआती पढ़ाई और गिनती (Foundational Literacy and Numeracy) का लक्ष्य हासिल करने का स्पष्ट रास्ता भी बताया गया है। 

पंचाड़ी - प्रारंभिक वर्षों के लिए NCF द्वारा सुझाई गई पाँच चरणों वाली शिक्षण पद्धति क्या है?

NCF के अध्याय 4 (शिक्षण पद्धति) में कहा गया है कि एक सुरक्षित, आरामदायक और खुशहाल कक्षा का माहौल प्री-स्कूल बच्चों को बेहतर सीखने और अच्छे नतीजे हासिल करने में मदद करता है।

यह सुझाव दिया गया है कि इस चरण में बच्चों को प्यार और संवेदनशीलता के साथ पढ़ाना  चाहिए। साथ ही, उन्हें अनुभव करने, प्रयोग करने और खोज करने के पर्याप्त मौके मिलने चाहिए। 

पांच चरणों वाली शिक्षण प्रक्रिया, पंचाड़ी, को शिक्षक के लिए सलाह के तौर पर दिया गया है, जिससे वे बच्चों को पढ़ाने की प्लैनिंग आसानी से कर सकें। 

पंचाड़ी - प्रारंभिक वर्षों के लिए NCF द्वारा सुझाई गई पाँच चरणों वाली शिक्षण पद्धति 

5 colored steps showing the steps of panchaadi, a 5 step learning process

NCF में पंचाड़ी के पाँच चरण हैं:

  1. परिचय (Introduction)

  2. संकल्पना की समझ (Conceptual Understanding)

  3. अभ्यास (Practice)

  4. उपयोग (Application)

  5. विस्तार/प्रसार (Expansion) 

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  1. पहला चरण- परिचय (अधीति)

अधीति, संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है पढ़ना, सोच-विचार करना और याद रखना। इस चरण में बच्चे को नया विषय उसके पहले से सीखे हुए ज्ञान से जोड़कर समझाया जाता है। शिक्षक उन्हें नए विषय से जुड़ी जानकारी जुटाने में मदद करते हैं। इसके लिए वे सवाल करते हैं और बच्चों को जवाब खोजने, कोशिश करने और चीज़ों के साथ अनुभव करने का मौका देते हैं।

सहारा देना (Scaffolding):

पहले से सीखी बातों को नए ज्ञान से जोड़ना सीखने में मदद करता है और नया विषय समझना आसान बनाता है। इसे ‘पूर्व ज्ञान सक्रिय करना’ या ‘सहारा देना’ कहते हैं। इससे बच्चे नया ज्ञान पहले से सीखी बातों से जोड़ पाते हैं और उनकी समझ गहरी होती है। इससे वे नए विषय को बेहतर समझते हैं, पैटर्न पहचान पाते हैं और अपने आस-पास की दुनिया के बारे में बेहतर समझ विकसित कर सकते हैं।

इस तरह, बच्चे जानकारी को लंबे समय तक याद रख सकते हैं और सीखने में अधिक रुचि और सक्रियता दिखाते हैं।

  1. दूसरा चरण- बोध

‘बोध’ एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है ज्ञान, बुद्धि या अज्ञान का नाश।

इस चरण में बच्चे खेल, खोज, प्रयोग, चर्चा या पढ़ाई के माध्यम से मुख्य संकल्पनाओं (concepts) को समझते हैं। शिक्षक बच्चों के सीखने की प्रक्रिया को ध्यान से देखते हैं और मार्गदर्शन करते हैं ताकि पाठ्यक्रम में बच्चों के लिए जरूरी सभी ज़रूरी संकल्पनाएँ शामिल हों। इस चरण में खेल और प्रैक्टिकल  ऐक्टिविटीज (practical activities) को विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना गया है।

माता-पिता भी बच्चे की समझ को मज़बूत बनाने में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं। उदाहरण के लिए, अगर बच्चा आकृतियों (shapes) के बारे में सीख रहा है, तो आप घर या बाहर एक शेप खोजने का खेल (scavenger hunt) खेल सकते हैं, जिसमें बच्चे को रोज़मर्रा की वस्तुओं में अलग-अलग आकृतियाँ पहचाननी हों।

इसी तरह, अगर बच्चा गुरुत्वाकर्षण (gravity) के बारे में सीख रहा है, तो आप घर पर सरल प्रयोग करा सकते हैं - जैसे दो वस्तुएँ एक ही ऊँचाई से गिराकर देखना कि कौन-सी पहले गिरती है।

इन ऐक्टिविटीज के दौरान बच्चे को प्रश्न पूछने और अपने विचार शेयर करने के लिए प्रोत्साहित करें। इससे उनकी जिज्ञासा बढ़ती है, संवाद की भावना विकसित होती है और विषय की गहरी समझ बनती है।

इस तरह की इंटरएक्टिव और प्रैक्टिकल ऐक्टिविटीज न सिर्फ मूल संकल्पनाओं को मज़बूत करती हैं, बल्कि शिक्षा को मज़ेदार  बनाती हैं और बच्चे में जिज्ञासा, आलोचनात्मक सोच और भविष्य की पढ़ाई के लिए मज़बूत नींव तैयार करती हैं।

  1. तीसरा चरण- अभ्यास (Abhyasa)

अभ्यास’ एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है दोहराना या अभ्यास करना।अभ्यास के माध्यम से सुदृढ़ीकरण (Reinforcement through Practice)

इस तीसरे चरण में ध्यान इस बात पर होता है कि बच्चे की समझ और स्किल्स को विभिन्न रोचक ऐक्टिविटीज के माध्यम से मजबूत किया जाए। शिक्षक ग्रुप ऐक्टिविटी, छोटे प्रोजेक्ट या खेल आदि के माध्यम से विषय को गहराई से समझाने की कोशिश करते हैं।

घर पर अभ्यास के अवसर:

माता-पिता (या शिक्षक) का उद्देश्य यह होना चाहिए कि बच्चे को सीखी हुई बातों को अभ्यास और प्रयोग के ज़रिए लागू करने के अवसर मिलें। घर पर मज़ेदार और प्रैक्टिकल  ऐक्टिविटीज इस समझ को और पक्का करने में मदद करती हैं।

उदाहरण के लिए, अगर बच्चा जोड़ और घटाव  सीख रहा है, तो आप ऐसे बोर्ड गेम  या कार्ड गेम  खेल सकते हैं जिनमें गिनती या जोड़-घटाव शामिल हो।अगर बच्चा पौधों के बारे में सीख रहा है, तो उसे बीज बोने और उनके विकास को ध्यान से देखने के लिए प्रेरित करें।

यहां तक कि वर्कशीट प्रैक्टिस के दौरान भी, रटने या जबरदस्ती लिखवाने की बजाय, ऐसे प्ले-बेस्ड ऐक्टिविटीज करें जो बच्चे को खेल-खेल में सीखने का अवसर दे। (हमारी हिंदी वर्कशीट्स में ऐसे कई मजेदार अभ्यास शामिल हैं।)

इस तरह के प्रैक्टिकल  अनुभव न सिर्फ समझ को गहरा करते हैं, बल्कि बच्चे में समस्या-समाधान, सहयोग, और धैर्य जैसी ज़रूरी लाइफ स्किल्स भी विकसित करते हैं।जब आप अपने बच्चे की शिक्षा में सक्रिय रूप से शामिल होते हैं, तो आप एक ऐसा माहौल तैयार करते हैं जो लंबे समय तक याद रहने वाला ज्ञान और प्रैक्टिकल स्किल को बढ़ावा देता है।

  1. चौथा चरण- प्रयोग (Application)

‘प्रयोग’ एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है किसी सीखी हुई बात को उपयोग करना। 

वास्तविक जीवन से जोड़ना (Real-Life Integration)

इस चौथे चरण में ज़ोर इस बात पर होता है कि बच्चा अपने सीखे हुए ज्ञान और स्किल्स को अपने दैनिक जीवन में इस्तेमाल करना शुरू करे। इसके लिए खेल, छोटे-छोटे प्रोजेक्ट्स और ऐक्टिविटीज के माध्यम से सीखी हुई बातों का प्रैक्टिकल  उपयोग कराया जाता है।

इस चरण का उद्देश्य यह है कि सीखना केवल किताबों तक सीमित न रहे, बल्कि जीवन से जुड़ा हुआ अनुभव बने। असली सीख वही होती है जो बच्चे अपने रोज़मर्रा के जीवन में इस्तेमाल कर सकें।

माता-पिता के तौर पर आप भी इसमें अपने बच्चे की मदद कर सकते हैं । उदाहरण के लिए, अगर बच्चा आकृतियों (shapes) के बारे में सीख रहा है, तो आप घर या आस-पड़ोस में “शेप हंट” खेल सकते हैं, जिसमें बच्चे को अलग-अलग आकृतियों को पहचानने और उनके बारे में बात करने का मौका मिले।

अगर बच्चा पैसों के बारे में सीख रहा है, तो आप उसे किराने की खरीदारी या बजट बनाने में शामिल कर सकते हैं, ताकि वह सिक्के गिनने और पैसे के मूल्य को समझने का अभ्यास कर सके।

इस तरह के प्रैक्टिकल अनुभव सीखने की प्रक्रिया को मज़बूत करते हैं और बच्चे को यह समझने में मदद करते हैं कि शिक्षा का महत्व कक्षा के बाहर भी है। इससे वे आत्मविश्वासी, सक्षम और ज़िम्मेदार व्यक्ति बनते हैं।

  1. पाँचवा चरण- प्रसार (Expansion)

‘प्रसार’ एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है विस्तार करना या ज्ञान को साझा करना।

ज्ञान साझा करना (Knowledge Sharing)

इस अंतिम चरण में बच्चों को अपनी सीखे हुए ज्ञान को दूसरों के साथ साझा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है - जैसे बातचीत के ज़रिए, कहानी सुनाकर, गीत गाकर, साथ में किताबें पढ़कर या नए खेल खेलकर।

जब बच्चे अपनी सीखी हुई बातें दूसरों को बताते हैं, तो उनके दिमाग में बने न्युरल पाथवेस (neural pathways) और मज़बूत हो जाते हैं। किसी विषय को सिखाना, शिक्षा  की प्रक्रिया को पूरा करता है, क्योंकि जब हम किसी चीज़ को सिखाते हैं तो हम खुद उसे और गहराई से समझते हैं। यही बात Feynman Technique में भी बताई गई है - यानी जो सीखा है, उसे किसी और को सिखाकर अपनी समझ को गहरा करना।

जब बच्चे नए विषय को अपने अनुभवों और ज्ञान के साथ जोड़कर देखते हैं, तो उनमें उस विषय के प्रति रुचि बढ़ती है।

इस तरह वे केवल रटने तक सीमित नहीं रहते, बल्कि उससे एक कदम आगे बढ़कर वास्तविक ज्ञान विकसित करते हैं। इससे वे अपने ज्ञान का उपयोग भी कर सकते हैं और उससे कुछ नया भी बना सकते हैं। ऐसा करने से उनकी समझ गहरी होती है और उन्हें उपलब्धि का एहसास होता है। जब वे अपने ज्ञान को शेयर करते हैं और बार-बार दोहराते हैं, तो उनके ज्ञान की नींव और मजबूत होती जाती  है।

इस महत्वपूर्ण चरण में आप अपने बच्चे को प्रोत्साहित करे ताकि वे अपनी सीखी हुई बातें परिवार, दोस्तों या सहपाठियों के साथ साझा करें।

उदाहरण के लिए, अगर आपके बच्चे ने वाटर साइकिल (water cycle) के बारे में सीखा है, तो वह अपने भाई-बहनों या दोस्तों को समझाने के लिए एक छोटा डेमो बना सकता है। इसमें आप भी उसकी मदद कर सकते हैं - वह playdoh या अन्य सामग्रियों से एक छोटा मॉडल तैयार कर दूसरों को इसके बारे में सीखा सकता है।

अगर उसने कोई नया स्किल्स सीखा है, जैसे पज़ल (puzzle) हल करना या संगीत वाद्ययंत्र बजाना, तो उसे दूसरों को दिखाने और सिखाने के लिए प्रोत्साहित करें। इस तरह के ज्ञान-साझा करने वाले माहौल में बच्चा न केवल अपनी समझ को मजबूत करता है, बल्कि सहानुभूति, सहयोग, और मिल-जुलकर काम करने की क्षमता भी विकसित करता है।

स्कूल में ‘Flipped Classroom’ ऐक्टिविटी:

इस प्रक्रिया को स्कूलों में भी अपनाया जा सकता है, जैसे “Flipped Classroom” ऐक्टिविटीज में। इसमें हर बच्चा शिक्षक के मार्गदर्शन में एक विषय पूरी कक्षा को सिखाता है। इससे बच्चे सिर्फ मूक दर्शक न रहकर सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय भागीदार बन जाते हैं। 

यह तरीका बच्चों को केवल रटने के बजाय विषय गहराई से समझने के लिए प्रेरित करता है। दूसरों को सिखाने की प्रक्रिया में बच्चे भविष्य की नींव मज़बूत करते हैं। वे ऐसे व्यक्ति बनते हैं जो दूसरों के साथ जुड़ना, रचना और योगदान देना जानते हैं।

अंत में:

पंचाड़ी की यह प्रक्रिया हमारे “Playful Home Education” के इस विश्वास को और मज़बूत करती है कि खेल और fun activities हर प्रीस्कूल बच्चे की शिक्षा का हिस्सा होनी चाहिए।

अगर आप खेल-आधारित शिक्षण तकनीकों (play-based teaching methods) के बारे में जानना चाहते हैं, तो हमारी अन्य पोस्ट और activity-based worksheets ज़रूर देखें। यह देखकर खुशी होती है कि अब राष्ट्रीय नीतियाँ भी इन विचारों के अनुरूप हो रही हैं।

पंचाड़ी की प्रक्रिया बच्चों में विकासशील सोच (growth mindset) को बढ़ावा देती है और उनमें जीवनभर सीखते रहने का प्रेम जगाती है। यह बच्चों को न केवल स्कूली जीवन में, बल्कि आगे जीवन में भी आने वाली चुनौतियों का आत्मविश्वास से सामना करने की शक्ति देती है। 

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इस लेख में जिन बाहरी वेबसाइटों या संस्थाओं का उल्लेख किया गया है, उनसे हमारा कोई व्यावसायिक संबंध नहीं है।


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