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Some Hindi Poems for Indian National Festivals

Here are some Hindi songs and poems that you can teach your child to recite or perform for Indian Independence Day on 15th August and Indian Republic Day on 26th January.


This is a compilation of the songs and poems we loved as children, and they are still relevant. These compositions can be used in many ways to teach children languages, poetry, singing, and history. We encourage you to explore these in your play-based home education to create enjoyable and informative lessons and performances that you and your child will love.


National Song: "Vande Mataram" (Sanskrit)


Vande Mataram in Devanagari Script

वन्दे मातरम्।

सुजलाम् सुफलाम्

मलयजशीतलाम्

शस्यश्यामलाम् मातरम्।

वन्दे मातरम्।


शुभ्रज्योत्स्नाम्

पुलकितयामिनीम्

फुल्लकुसुमित

द्रुमदलशोभिनीम्

सुहासिनीम्

सुमधुर भाषिणीम्

सुखदाम् वरदाम्

मातरम्।।

वन्दे मातरम्।




 

Patriotic Song: "Saare jahan se achcha" (Urdu)

(Stanzas (1), (3), (4), and (6) given here are considered an unofficial national song in India)

Saare Jahan Se Achcha in Devanagari Script

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलसिताँ हमारा


परबत वह सबसे ऊँचा, हम्साया आसमाँ का वह संतरी हमारा, वह पासबाँ हमारा


गोदी में खेलती हैं इसकी हज़ारों नदियाँ गुल्शन है जिनके दम से रश्क-ए-जनाँ हमारा


मज़्हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना हिंदी हैं हम, वतन है हिन्दोसिताँ हमारा




 

"पुष्प की अभिलाषा" - माखनलाल चतुर्वेदी


चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ, चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ, चाह नहीं, सम्राटों के शव पर हे हरि, डाला जाऊँ, चाह नहीं, देवों के सिर पर चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ। मुझे तोड़ लेना वनमाली! उस पथ पर देना तुम फेंक, मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जावें वीर अनेक




 

"झांसी की रानी" - सुभद्राकुमारी चौहान

 Although this poem is criticized for using the word "मर्दानी" to describe Queen Lakshmibai's valour, but I would suggest that instead of focusing on the choice of word, which was appropriate for the time when it was composed, let us focus on the theme that celebrates the strength and bravery of the Queen of Jhansi, Rani Lakshmibai. The powerful and evocative words create a vivid imagery. In structure and form of the poem, the rhyming scheme and rhythm create an uplifting, inspiring tone, that is perfect for children to recite. There is great symbolism in this poem, and it evokes strong emotions in us. There is an important historical context to the story narrated. The beauty and significance of this poem is undeniable!



सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी, गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी, दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी। चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


Read Full Poem

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,

लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,

नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,

बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।


वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,

देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,

नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,

सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़।


महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,

ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,

राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,

सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में।


चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,

किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,

तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,

रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।


निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,

राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,

फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,

लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।


अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,

व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,

डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,

राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।


रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,

कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,

उदैपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?

जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।


बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,

उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,

सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,

'नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।


यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,

वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,

नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,

बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।


हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,

यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,

झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,

मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी॥


जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,

नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,

अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,

भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।


लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,

जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,

लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,

रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में।


ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,

घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,

यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,

विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।


अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,

अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,

काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,

युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।


पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,

किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,

घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,

रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।


घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,

मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,

अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,

हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी॥


दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,

'बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,

यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,

होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,

हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।


तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥



 

"प्यारे भारत देश" - माखनलाल चतुर्वेदी

 प्यारे भारत देश गगन-गगन तेरा यश फहरा पवन-पवन तेरा बल गहरा क्षिति-जल-नभ पर डाल हिंडोले चरण-चरण संचरण सुनहरा ओ ऋषियों के त्वेष प्यारे भारत देश।। वेदों से बलिदानों तक जो होड़ लगी प्रथम प्रभात किरण से हिम में जोत जागी उतर पड़ी गंगा खेतों खलिहानों तक मानो आँसू आये बलि-महमानों तक सुख कर जग के क्लेश प्यारे भारत देश।। तेरे पर्वत शिखर कि नभ को भू के मौन इशारे तेरे वन जग उठे पवन से हरित इरादे प्यारे! राम-कृष्ण के लीलालय में उठे बुद्ध की वाणी काबा से कैलाश तलक उमड़ी कविता कल्याणी बातें करे दिनेश प्यारे भारत देश।। जपी-तपी, संन्यासी, कर्षक कृष्ण रंग में डूबे हम सब एक, अनेक रूप में, क्या उभरे क्या ऊबे सजग एशिया की सीमा में रहता केद नहीं काले गोरे रंग-बिरंगे हममें भेद नहीं श्रम के भाग्य निवेश प्यारे भारत देश।। वह बज उठी बासुँरी यमुना तट से धीरे-धीरे उठ आई यह भरत-मेदिनी, शीतल मन्द समीरे बोल रहा इतिहास, देश सोये रहस्य है खोल रहा जय प्रयत्न, जिन पर आन्दोलित-जग हँस-हँस जय बोल रहा, जय-जय अमित अशेष प्यारे भारत देश।।

 

"यह है भारत देश हमारा" - सुब्रह्मण्य भारती

Patriotic poem about India

चमक रहा उत्तुंग हिमालय, यह नगराज हमारा ही है।

जोड़ नहीं धरती पर जिसका, वह नगराज हमारा ही है।

नदी हमारी ही है गंगा, प्लावित करती मधुरस धारा,

बहती है क्या कहीं और भी, ऎसी पावन कल-कल धारा?


सम्मानित जो सकल विश्व में, महिमा जिनकी बहुत रही है

अमर ग्रन्थ वे सभी हमारे, उपनिषदों का देश यही है।

गाएँगे यश ह्म सब इसका, यह है स्वर्णिम देश हमारा,

आगे कौन जगत में हमसे, यह है भारत देश हमारा।

यह है भारत देश हमारा, महारथी कई हुए जहाँ पर,

यह है देश मही का स्वर्णिम, ऋषियों ने तप किए जहाँ पर,

यह है देश जहाँ नारद के, गूँजे मधुमय गान कभी थे,

यह है देश जहाँ पर बनते, सर्वोत्तम सामान सभी थे।

यह है देश हमारा भारत, पूर्ण ज्ञान का शुभ्र निकेतन,

यह है देश जहाँ पर बरसी, बुद्धदेव की करुणा चेतन,

है महान, अति भव्य पुरातन, गूँजेगा यह गान हमारा,

है क्या हम-सा कोई जग में, यह है भारत देश हमारा।

विघ्नों का दल चढ़ आए तो, उन्हें देख भयभीत न होंगे,

अब न रहेंगे दलित-दीन हम, कहीं किसी से हीन न होंगे,

क्षुद्र स्वार्थ की ख़ातिर हम तो, कभी न ओछे कर्म करेंगे,

पुण्यभूमि यह भारत माता, जग की हम तो भीख न लेंगे।

मिसरी-मधु-मेवा-फल सारे, देती हमको सदा यही है,

कदली, चावल, अन्न विविध अरु क्षीर सुधामय लुटा रही है,

आर्य-भूमि उत्कर्षमयी यह, गूँजेगा यह गान हमारा,

कौन करेगा समता इसकी, महिमामय यह देश हमारा।

 

"हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के" - शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

(Inspirational poem about subjugation and captivity) हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के पिंजरबद्ध न गा पाएँगे, कनक-तीलियों से टकराकर पुलकित पंख टूट जाऍंगे। हम बहता जल पीनेवाले मर जाएँगे भूखे-प्‍यासे, कहीं भली है कटुक निबोरी कनक-कटोरी की मैदा से, स्‍वर्ण-श्रृंखला के बंधन में अपनी गति, उड़ान सब भूले, बस सपनों में देख रहे हैं तरू की फुनगी पर के झूले। ऐसे थे अरमान कि उड़ते नील गगन की सीमा पाने, लाल किरण-सी चोंचखोल चुगते तारक-अनार के दाने। होती सीमाहीन क्षितिज से इन पंखों की होड़ा-होड़ी, या तो क्षितिज मिलन बन जाता या तनती साँसों की डोरी। नीड़ न दो, चाहे टहनी का आश्रय छिन्‍न-भिन्‍न कर डालो, लेकिन पंख दिए हैं, तो आकुल उड़ान में विघ्‍न न डालो।

 

"अरुण यह मधुमय देश हमारा" - जयशंकर प्रसाद

 अरुण यह मधुमय देश हमारा। जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।। सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर। छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा।। लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे। उड़ते खग जिस ओर मुँह किए, समझ नीड़ निज प्यारा।। बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल। लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा।। हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे। मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा।।


 

"और भी दूँ " - रामावतार त्यागी

 मन समर्पित, तन समर्पित, और यह जीवन समर्पित। चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ। माँ तुम्‍हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन, किंतु इतना कर रहा, फिर भी निवेदन- थाल में लाऊँ सजाकर भाल मैं जब भी, कर दया स्‍वीकार लेना यह समर्पण। गान अर्पित, प्राण अर्पित, रक्‍त का कण-कण समर्पित। चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ। माँज दो तलवार को, लाओ न देरी, बाँध दो कसकर, कमर पर ढाल मेरी, भाल पर मल दो, चरण की धूल थोड़ी, शीश पर आशीष की छाया धनेरी। स्‍वप्‍न अर्पित, प्रश्‍न अर्पित, आयु का क्षण-क्षण समर्पित। चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ। तोड़ता हूँ मोह का बंधन, क्षमा दो, गाँव मेरी, द्वार-घर मेरी, ऑंगन, क्षमा दो, आज सीधे हाथ में तलवार दे-दो, और बाऍं हाथ में ध्‍वज को थमा दो। सुमन अर्पित, चमन अर्पित, नीड़ का तृण-तृण समर्पित। चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।


 

"ध्वज-वंदना" - रामधारी सिंह "दिनकर"

 नमो, नमो, नमो... नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो! नमो नगाधिराज-शृंग की विहारिणी! नमो अनंत सौख्य-शक्ति-शील-धारिणी! प्रणय-प्रसारिणी, नमो अरिष्ट-वारिणी! नमो मनुष्य की शुभेषणा-प्रचारिणी! नवीन सूर्य की नई प्रभा, नमो, नमो! नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो! हम न किसी का चाहते तनिक, अहित, अपकार प्रेमी सकल जहान का भारतवर्ष उदार सत्य न्याय के हेतु, फहर फहर ओ केतु हम विरचेंगे देश-देश के बीच मिलन का सेतु पवित्र सौम्य, शांति की शिखा, नमो, नमो! नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो! तार-तार में हैं गुंथा ध्वजे, तुम्हारा त्याग दहक रही है आज भी, तुम में बलि की आग सेवक सैन्य कठोर, हम चालीस करोड़ कौन देख सकता कुभाव से ध्वजे, तुम्हारी ओर करते तव जय गान, वीर हुए बलिदान अंगारों पर चला तुम्हें ले सारा हिन्दुस्तान! प्रताप की विभा, कृषानुजा, नमो, नमो! नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो!


 

"गुलामी मिटा दो"- राम प्रसाद बिस्मिल

 दुनिया से गुलामी का मैं नाम मिटा दूंगा, एक बार ज़माने को आज़ाद बना दूंगा। बेचारे ग़रीबों से नफ़रत है जिन्हें, एक दिन, मैं उनकी अमरी को मिट्टी में मिला दूंगा। यह फ़ज़ले-इलाही से आया है ज़माना वह, दुनिया की दग़ाबाज़ी दुनिया से उठा दूंगा। ऐ प्यारे ग़रीबो! घबराओ नहीं दिल मंे, हक़ तुमको तुम्हारे, मैं दो दिन में दिला दूंगा। बंदे हैं ख़ुदा के सब, हम सब ही बराबर हैं, ज़र और मुफ़लिसी का झगड़ा ही मिटा दूंगा। जो लोग ग़रीबों पर करते हैं सितम नाहक़, गर दम है मेरा क़ायम, गिन-गिन के सज़ा दूंगा। हिम्मत को ज़रा बांधो, डरते हो ग़रीबों क्यों? शैतानी क़िले में अब मैं आग लगा दूंगा। ऐ ‘सरयू’ यक़ीं रखना, है मेरा सुख़न सच्चा, कहता हूं, जुबां से जो, अब करके दिखा दूंगा।


 

"चरखे़ की प्रतिज्ञा" - शैलेंद्र चतुर्वेदी

 मेरे चरख़े का टूटे न तार, हरदम चलाता रहूं। भारत के संकट पे तन-मन लगा दूं, प्राणों को कर दूं न्यौछार, खद्दर बनाता रहूं। खद्दर के कपड़े स्वदेशी बना के, विदेशी में ठोकर मार, घिन्नी घुमाता रहूं। गांधी के वचनों को पूरा करा दूं, भारत को लूंगा उबार, माला चढ़ाता रहूं। चुटकी से तागे को बट करके जोडूं, हरि का बनाऊं मैं हार, फरही दबाता रहूं। लेंगे इसी से शैलेंद्र स्वराज्य अब, होंगे गुलामी से पार, मंगल मनाता रहूं। विदेशी कपड़े के होंगे हवन अब, कर दें जलाकर के छार, आहुति चढ़ाता रहूं।


 

आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ (Movie Song)

Lyricist Kavi Pradeep

आओ बच्चो तुम्हें दिखाएं झाँकी हिंदुस्तान की इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की वंदे मातरम ... उत्तर में रखवाली करता पर्वतराज विराट है दक्षिण में चरणों को धोता सागर का सम्राट है जमुना जी के तट को देखो गंगा का ये घाट है बाट-बाट पे हाट-हाट में यहाँ निराला ठाठ है देखो ये तस्वीरें अपने गौरव की अभिमान की, इस मिट्टी से ... ये है अपना राजपूताना नाज़ इसे तलवारों पे इसने सारा जीवन काटा बरछी तीर कटारों पे ये प्रताप का वतन पला है आज़ादी के नारों पे कूद पड़ी थी यहाँ हज़ारों पद्‍मिनियाँ अंगारों पे बोल रही है कण कण से कुरबानी राजस्थान की इस मिट्टी से ... देखो मुल्क मराठों का ये यहाँ शिवाजी डोला था मुग़लों की ताकत को जिसने तलवारों पे तोला था हर पावत पे आग लगी थी हर पत्थर एक शोला था बोली हर-हर महादेव की बच्चा-बच्चा बोला था यहाँ शिवाजी ने रखी थी लाज हमारी शान की इस मिट्टी से ... जलियाँ वाला बाग ये देखो यहाँ चली थी गोलियाँ ये मत पूछो किसने खेली यहाँ खून की होलियाँ एक तरफ़ बंदूकें दन दन एक तरफ़ थी टोलियाँ मरनेवाले बोल रहे थे इनक़लाब की बोलियाँ यहाँ लगा दी बहनों ने भी बाजी अपनी जान की इस मिट्टी से ... ये देखो बंगाल यहाँ का हर चप्पा हरियाला है यहाँ का बच्चा-बच्चा अपने देश पे मरनेवाला है ढाला है इसको बिजली ने भूचालों ने पाला है मुट्ठी में तूफ़ान बंधा है और प्राण में ज्वाला है जन्मभूमि है यही हमारे वीर सुभाष महान की इस मिट्टी से ...


 

मेरे देश की धरती (movie song)

Lyricist Indeevar

मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती बैलों के गले में जब घुँघरू जीवन का राग सुनाते हैं ग़म कोस दूर हो जाता है खुशियों के कंवल मुस्काते हैं सुन के रहट की आवाज़ें यूँ लगे कहीं शहनाई बजे आते ही मस्त बहारों के दुल्हन की तरह हर खेत सजे मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती जब चलते हैं इस धरती पे हल ममता अँगड़ाइयाँ लेती है क्यों ना पूजें इस माटी को जो जीवन का सुख देती है इस धरती पे जिसने जन्म लिया उसने ही पाया प्यार तेरा यहाँ अपना पराया कोई नही हैं सब पे है माँ उपकार तेरा मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती ये बाग़ हैं गौतम नानक का खिलते हैं अमन के फूल यहाँ गांधी, सुभाष, टैगोर, तिलक ऐसे हैं चमन के फूल यहाँ रंग हरा हरिसिंह नलवे से रंग लाल है लाल बहादुर से रंग बना बसंती भगतसिंह से रंग अमन का वीर जवाहर से मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती मेरे देश की धरती...


 

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